फिर लौट आई कामिनी: कहानी (अनीता चौधरी)

कथा-कहानी कहानी

अनीता 2569 11/17/2018 12:00:00 AM

सभ्यता एवं सभ्यता विकास की बराबर हिस्सेदार दुनिया की आधी आवादी को लेकर उसकी मुक्ति के साथ आधुनिक, शिक्षित और सभ्य समाज की परिभाषा गढ़ना हमें जितना आसान जान पड़ता है वहीँ वास्तविकता के धरातल पर उस मानसिकता को अपने व्यवहार में शामिल कर पाना उतना ही मुश्किल क्यों बना हुआ है ….? जब एक तरफ पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति और बाज़ार को सामाजिक विकास का आधार मानकर उसे अनुकरणीय मानने की ज़िद है तो वहीँ सामाजिक, सांस्कृतिक मान-मर्यादाओं के नाम पर मानवीय अधिकारों के हनन और सामाजिक हासियाकरण को भी जायज ठहराना एक नई वहस और विरोधाभास पैदा करता है | इन्ही विरोधाभासों से जूझते हुए संघर्षीय चेतना के साथ बुनी हुयी अनीता चौधरी की कहानी | – संपादक

   

अनीता चौधरी    अनीता चौधरी

फिर लौट आई कामिनी

सवेरा होते ही, यह खबर आग की तरह फैल गयी कि कामिनी रात पूरे पाँच साल के बाद लौटकर अपने गाँव दौलतपुर में आ गयी है। गाँव के हर गली कूंचे व नुक्कड़ पर, तीन चार व्यक्ति खड़े होकर उसी चर्चा में लगे थे। ऐसा लग रहा था कि इस समय ये सब लोग कितने निठल्ले व फुरसत में है। इनके पास कोई काम नही है, सिवाय इस चर्चा में शामिल होने के। सब इसी इंतजार में थे कि देखते हैं, खैमी और उसके बेटे क्या करते हैं।
मुश्किल से तो गाँव वाले इस नाम को भूल पाये थे। यदा-कदा ये नाम उसकी ज़ुबान पर अक्सर आ ही जाया करता था। आए भी क्यों नहीं ? अपने गाँव के अलावा आस-पास के गाँवों के लोग भी कामिनी की मेहनत और हिम्मत का लोहा मानते थे। पढ़ाई-लिखाई से संबंधित किसी भी जानकारी के लिए सब उसी के पास आया करते थे। वह जब भी गली मुहल्ले से बाहर निकलकर जाती और लड़कों को बेवजह गप्पबाजी करते हुए देखती तो उनमें लताड़ लगाती ‘‘तुम लोग पढ़-लिख नही सकते हो ? सुबह के निकलते हो, शाम को घर में घुसते हो। यूँ ही मुँह उठाए इधर-उधर घूमते रहते हो।’’ लड़के उसकी बातों को हवा में उड़ाते हुए जोर का ठहाका लगाते और कहते ‘‘हम लड़कों को पढ़ने की ज़रूरत नहीं है। हम तो बिना पढ़े-लिखे भी लड़के हैं और तुम जैसी पढ़ी-लिखी लड़कियों पर अपना आर्डर चला सकते हैं…समझी । तू खूब पढ़-लिख, किसी ने तुझसे मना किया है क्या….?’’ कामिनी उनके इस कमेन्ट की परवाह किये बगैर उनकी तरफ मुँह चिढ़ाती हुई निकल जाती। खेमचन्द ने गाँव वालों के लाख मना करने पर भी कामिनी को बड़े कॉलेज में पढ़ने के लिए भेजा था। वह सारे गाँव में बड़े शान से कहता था कि ‘‘मेरी तो बेटी ही मेरा नाम ऊँचा करेगी। बेटे तो दोनों गधे हैं।’’ कुछ दिनों बाद तो गाँव वालों को भी कामिनी पर नाज़ होने लगा था कि उनके गाँव की बेटी भी अब एक बड़े नामी विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर रही है और वहां से कुछ बनकर ही अएगी। लोग अपने बच्चों को कामिनी का उदाहरण देते थे। ‘देख लो उस खैमी की लड़की को, अरे दूसरे शहर में अकेली रहकर अपनी पढ़ाई कर रही है।’
खैमी ने भी कोई कसर नही छोड़ी थी। जब भी कोई त्यौहार आता आठ-दस दिन पहले से ही घर में नयी-नयी तरह की मिठाईयाँ तथा पकवान बनने लगते और डिब्बों में भरकर खैमी खुद उनको लेकर अपनी बेटी के पास पहुंचा आता था। भगवान की कृपा से खैमी के पास रूपये-पैसे की कोई कमी न थी। उस के पास लगभग 60 बीघा खेत था जिसे वह अकेला ही जोतता था। गाहे-बगाहे उसके लड़के कहते भी थे कि क्या करना है पढ़-लिख के। अरे हमारे बाप के पास ढेर ज़मीन है, चाहें तो अपने-अपने हिस्से की ज़मीन बेचकर पूरी जि़न्दगी बैठकर आराम से खा सकते हैं। बेटों की इस तरह की बात सुनकर, खैमी बहुत दुखी होता था। लेकिन बेटी की तरफ से वह सुखी था कि चलो तीनों औलादों में से एक तो पढ़ने-लिखने में ठीक है। कामिनी कॉलेज की छुट्टियों में गाँव आती। वह सबके साथ ऐसे ही खिलन्दडे़पन से घूमती, बात-चीत करती जैसे वह पहले किया करती थी। गाँव वालों को बहुत अचम्भा होता था क्योंकि शहर जाने के बाद, उसका अपना पहनावा व गेटअप एकदम शहर की लड़कियों की तरह हो गया था। परन्तु उसकी आदतों में कोई परिवर्तन नहीं आया था। इसलिए भी सब उसकी तारीफ करते थे। शहर मेें पढ़ने-लिखने के बावज़ूद अपने गाँव से कितना लगाव रखती है।
कामिनी एम0 ए0 करने के बाद समाजशास्त्र से पी0 एच0 डी0 करना चाहती थी। उसकी ख्वाहिश थी कि वह किसी भी सामाजिक बिन्दु पर शोध करे। बचपन में वह अपने पिता के साथ खेतों पर घूमने जाया करती थी। वह रास्ते में कुछ लोगों के टूटे-फूटे घरों व झोंपडियों को देखती, इन घरों में मैल से चीकट कपडों को पहने ढेर बच्चों को देखती। वह हमेशा यही पूछती, ‘‘पिताजी ये लोग हमारे जैसे घरों में क्यों नहीं रहते….? इनके बच्चे स्कूल क्यों नहीं जाते हैं….?’’
पिताजी का हमेशा एक ही जबाव होता ‘‘ये ग़रीब पिछड़ी जाति के लोग हैं। ये हमेशा से ऐसे ही जीते आये हैं।’’ वह शांत हो जाती लेकिन उसके भीतर अनेक प्रश्न अपना फन उठाये उसे काटते रहते कि इसकी वज़ह क्या है ? वह समाज की हर चीज़ को पढ़ लेना चाहती थी। इसलिए उसने एम0 ए0 में समाजशास्त्र ही लिया था। न केवल पढ़ने में बल्कि वाक्पटुता में हमेशा से ही कामिनी तेज तर्रार थी इसी खूबी के कारण एम0 ए0 के अंतिम वर्ष में आते-आते ही वह कक्षा की नेता बन गयी थी। जब कॉलेज में छात्र चुनाव हुए तो वह चुनाव जीत गयी और दूसरे दिन अखवार के मुख्य पृष्ठ पर कॉलेज की खबर के साथ उसका फोटो भी छपा था। गाँव के सभी लोग खुश थे और खैमी को बधाई दे रहे थे।
छात्रसंघ की नेता बनने के बाद कामिनी बहुत व्यस्त रहने लगी थी। अब उसके फोन भी आना कम हो गये थे। पहले वह रोज किसी न किसी वक़्त फोन करके घर की राजी-खुशी पूछ ही लिया करती थी। यह सिलसिला लगातार घटता गया तो दस-दस दिन निकल जाते उसका फोन नही आता था। माँ को चिन्ता होती तो खैमी उसे समझाता ‘‘तू चिन्ता मत किया कर हमारी बेटी ठीक है। अब वह छात्रों की नेता बन गयी है तो उनकी समस्याओं को भी हल करती होगी और अपनी पढ़ाई भी, इसलिए उसे फोन करने का वक़्त नही मिल पाता होगा। और…, क्या हुआ महीने में दो-चार बार तो फोन कर ही लेती है न।’’ कमला भी खैमी की बात सुनकर चुप हो जाती लेकिन वह अपने अन्तर्मन को शान्त न कर पाती। उसे हर समय एक ही भय सताता कि लड़की के साथ कुछ ग़लत न हो जाये। परन्तु वह इस मन की व्यथा को किसी से कह न पाती।
अपनी मधुर भाषा और बातों को एकदम अदभुत स्टाइल से कहने के कारण कामिनी सभी छात्रों के दिलों के बहुत क़रीब रहती थी। सभी की परेशानियों को भी समझती उनका चिन्तन-मनन कर केेेेेेेेेेेेे हल निकालने की कोशिश भी करती। वह छात्रों की किसी समस्या को लेकर कॉलेज प्रबंधन समिति से अकेली ही मिलती। उन समस्याओं को उनके सामने रखती। उन पर बहस करती और ऐसे तर्क देती जिनका कोई काट नही होता। अन्ततः जीत छात्रों की होती। उसकी इस वाक्पटुता तथा तर्कशक्ति की वज़ह से बहुत से लड़के उससे दोस्ती करने के लिए हाथ बढ़ाते तो वह तुरन्त बोल देती, ‘‘मैं तो पहले ही तुम्हारी दोस्त हूँ। इस ख़ास दोस्ती की क्या ज़रूरत है….?’’ इतना सुनते ही लड़के अपना हाथ पीछे खींच लेते और इधर-उधर आखें चुराने लगते। संदीप, उनका साथी होने पर भी थोड़ा-सा, उन लड़कों से अलग था। उसको बहुत बुरा लगता जब कोई लड़का कामिनी पर कमैंन्ट्स करता। वह कहता ‘‘अगर हिम्मत है तो उसके सामने आकर कहो। पीठ पीछे तो सभी गालियां दे लेते हैं।’’
सभी लड़के उसकी बात पर ताली पीट-पीट कर हंसते और कहते ‘‘ओह, हमेें इस तरह से कमेन्ट्स नहीं करने चाहिए…? अबे साले तुझे बहुत प्रॉबलम होती है ? तेरी क्या वह बहन लगती है ….?’’
उनमें से ही किसी लड़के ने कहा ‘‘यार एकदम ठीक कह रहा है…… हो सकता है…. इसने, उसे अपनी बहन बना लिया हो। ये भी तो उसके गाँव के पास का ही है।’’ और फिर सभी ज़ोर-ज़ोर से ठहाके मारकर हँसने लगे। धीरे-धीरे उन लड़कों की ये हरकतें कॉलेज में फैलने लगीं तो संदीप ने उनका साथ छोड़ दिया। अब वह ज़्यादा वक़्त लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ने में लगा देता।
कामिनी को जब उन लड़कों से संदीप के झगड़े के बारे में पता चला तो उसके मन में संदीप के लिए एक सकारात्मक सोच पैदा होने लगी। एम0 ए0 फाइनल परीक्षाऐं नजदीक आ गयी थीं। कामिनी ने फि़लहाल सभी समस्याओं को छोड़कर अपनी पूरी एकाग्रता अपनी पढ़ाई पर लगा दी थी। किताबों की अदला-बदली के कारण कामिनी यदा-कदा लाइब्रेरी जाती, तो संदीप से भी उसकी मुलाक़ात हो जाती। एक दिन बात-चीत के दौरान ही उसे पता चला कि संदीप का गाँव उसके गाँव से पच्चीस किमी0 आगे ही है। कामिनी को न जाने क्यों यह सुनकर बहुत खुशी हुई थी।
कामिनी को अपने गाँव जाये बिना भी करीब छः महीने गुज़र चुके थे। फोन से बात-चीत का दायरा भी कम हो गया था। अब खैमी को भी चिन्ता होने लगी थी। वह एक दिन अचानक ही उसके कॉलेज पहुँच गया था। अपने पिता को देखकर कामिनी बहुत खुश हुई । पास में संदीप को खड़ा देखकर खैेमी ने संदीप के बारे पूछा तो कहने लगी ‘‘पिताजी यह संदीप सिंह है। अपने ही गाँव के पास का है। यह भी मेरे साथ एम0 ए0 कर रहा है और ठीक मेरी तरह ही सोचता है। यह भी पी0 एच0 ड़ी0 करके कुछ रिसर्च करना चाहता है।’’ खैमी लगातार कामिनी के चेहरे को देख रहा था। वह बहुत खुश होकर तथा पूरे जोश के साथ ये सब बता रही थी। उसके सामने खैमी सिर्फ इतना ही कह पाया था। चलो अच्छा है, अपने गाँव का न सही पर अपने इलाक़े का एक बालक यहां मौज़ूद है। अब मेरी चिन्ताऐं भी कुछ कम हो जाऐंगीं।
बेटी के पास से वापस लौटते समय खैमी सारे रास्ते बस में बैठा यही सोचता रहा कि ‘जो लड़की कभी किसी लड़के को भाव नहीं देती थी, किसी भी लड़के से बात-चीत करने में रुचि नहीं दिखाती थी। वह आज संदीप के बारे में कितनी उत्साहपूर्ण बातें कर रही थी, ज़रुर कुछ बात तो है जो उसने मुझे नही बताई है। कहीं कामिनी उसके साथ……? नहीं… नहीं ऐसा नहीं हो सकता, मेरी बेटी बहुत समझदार है।’ बस के अचानक ब्रेक लगने की वज़ह से उसका सिर खिड़की के शीशे से जा टकराया तो उसकी तन्द्रा टूटी। उसने देखा कि बस एक सुनसान जगह पर खड़ी थी। बस का टायर पंचर हो गया था। वहां से शहर भी काफी दूर था। सभी लोग बस से नीचे उतर चुके थे। उसे भी बस से नीचे उतरना पड़ा। वह सड़क पर इधर-उधर टहलता हुआ सिर्फ कामिनी के बारे में ही सोचता रहा। अंततः उसने अपने आप को समझाया कि ‘जब लड़की घर से बाहर रह रही हो तो उसकी मित्रता किसी से भी हो सकती है। अब क्या लड़की और क्या लड़का ?’ उसने अपने आप को ऐसे समझाया और गांव पहुंच गया ।
कमला लगातार दरवाज़े पर टकटकी लगाए बैठी खैमी का इन्तज़ार कर रही थी। उसके मन में भी ढेर सारी अच्छी-बुरी आशंकाऐं समुद्र की लहरों की तरह उठ रही थीं। उसका मन कामिनी के शहर जाने के पहले दिन से ही चिन्तित था। वह नहीं चाहती थी कि जवान लड़की घर से दूर शहर में अकेली रहे, लेकिन खैमी की जि़द के आगे उसकी एक न चली थी। खैमी के घर में घुसते ही उसने सवालों की झड़ी लगा दी ‘‘कामिनी कैसी है..? उसने इतने दिनों से फोन क्याें नही किया ? वह सही तरह से तो रह रही है न ? वह खाना समय से खा रही है न ? वह शहर में ज़्यादा घूमने-फिरने तो नहीं लगी है न ?’’ और कहते कहते हांफने लगी ।
‘‘अरी भागवान तूने न पानी की पूछी न चाय की और सवालों की इतनी झड़ी लगा दी। पहले मुझे आराम से बै़ठ तो जाने दे तभी तो तेरे सवालों के जवाब दूंगा।’’ खैमी ने हाथ में लगे थैले को कमरे मेें लगी एक खूंटी पर टांगते हुए कहा। इतना सुनते ही कमला झैंप गई उसे लगा कि वह कुछ ज़्यादा ही भावावेश में आ गई है और तुरन्त पानी लेने चली गई। पानी पीने के बाद चैन की लम्बी सांस लेकर इत्मीनान से कमला के सभी सवालों का जवाब देते हुए खैमी ने कहा ‘‘कामिनी एकदम सही है परीक्षा नज़दीक होने की वज़ह से उसने फोन नहीं किया था। वह अधिकतर अपना समय पढ़ने में ही व्यतीत करती है।’’ इतना सुनते ही कमला खुश होकर अपने घर के कामों में व्यस्त हो गई।
एम0 ए0 की परीक्षा पूरी होते-होते ही कामिनी और संदीप एक दूसरे के करीब आ गये थे। दोनों अपना अधिकतर समय लाइब्रेरी में ही व्यतीत करते थे। और दोनों ही पी0 एच0 डी0 के लिए नैट की तैयारी करने में जुटे हुए थे। गर्मी की छुट्टियां हो चुकी थीं। इसलिए कुछ घरों को जा रहे थे और कुछ अपने रिसर्च में लगे थे। खैमी ने इस बार भी बेटी को गर्मी की छुट्टियां गांव में बिताने के लिए कहा तो कामिनी ने भी बहुत खुश होकर कहा ‘‘हां पापा इस बार मैं छुट्टियां गांव में ही व्यतीत करुंगी, हालांकि मेरी नैट की तैयारी चल रही है लेकिन कोई बात नहीं अगर मुझे कोई समस्या आएगी तो मैं संदीप से डिस्कस कर लूंगी। वह भी छुट्टियों में अपने गांव आ रहा है।’’ इतना सुनते ही खैमी ने फोन काट दिया और थोड़ा परेशान-सा होने लगा। पास में खड़ी कमला खैमी के चेहरे को देखते ही बोली ‘‘क्या बात है तुम फोन पर बात करते ही परेशान क्यों हो गये ? क्या कहा कामिनी ने वह आ नहीं रही है क्या ?’’ पत्नी की बात सुनते ही खैमी ने स्वंय को संयत कर तुरन्त जोश भरे अंदाज़ में कहा ‘‘अरे! कामिनी दो दिन बाद गांव आ रही है। वह भी पूरे एक महीने केे लिए।’’ इतना सुनते ही घर में सब लोगों के चेहरे खुशी से खिल गये। कमला से रहा नहीं गया तो आटे के सने हाथ लिए ही रसोई से निकल कर बाप बेटों की बात को बीच में काटते हुए बोली ‘‘कहे देती हूं इस बार मैं किसी की भी मानने वाली नहीं हूं, मेरी कम्मो कई सालों में इतनी लम्बी छुटिटयां बिताने आ रही है। इस बार तो मैं भगवान सत्यनारायण की कथा ज़रुर कराउंगी। उन्हाेंने मेरी प्रार्थना सुन ली है। मेरी बेटी सही सलामत अच्छी तरह से अपनी पढ़ाई पूरी कर रही है।’’ खैमी का छोटा बेटा रन्नो जो एकटक अपनी मां के चेहरे को पढ़ रहा था तुरन्त ही बोला ‘‘मम्मी तुम कितनी जल्दी भूल जाती हो कि जिसके लिए यह कथा करवाने की सोच रही हो क्या वह करने देगी तुम्हें ? याद नहीं एक बार श्राद्व के समय तुमने छत पर पत्तल लगा कर अपने प्रेतों के लिए खाना रख दिया था जिसे पक्षी चौंच मार-मार कर खराब कर रहे थे, तो उसने कितना हल्ला मचाया था, ‘‘जीवित इंसानों के लिए तुम्हारे पास खाना है नहीं और तुम लोग कर्म काण्डों के नाम पर खाना फैंक रहे हो।’’ गुस्से से उसने सारा खाना गांव के बाहर बनी बस्तियाें में रहने वाले सभी बच्चों को खिला दिया था। इस बात से तुम बहुत दिनों तक दीदी से गुस्सा हो गईं थीं। अब तो उनके पास ढेर सारे भाषण हाेंगे, तुम्हे सुनाने के लिए, वैसे भी अब वह प्रोफेसर बनने की तैयारी जो कर रही हैं।’’ इतना सुनते ही कमला का जोश कुछ ठंडा-सा पड़ गया। और बोली ‘‘हां…..हां ठीक है तुम सब बहन-भाई ज़्यादा होशियार हो गये हो। हम तो अनपढ गंवार हैं जिन्हें कुछ नहीं आता है।’’ और बड़बड़ाती हुई रसोई में घुस गई। खैमी अपने बड़े बेटे जग्गो के पास बैठा अंगोछा में मुंह छिपाए हंस रहा था। बेशक खैमी के दोनों बेटे रन्नो और जग्गो पढ़ने में होशियार नहीं थे न ही ज़्यादा पढ़े-लिखे थे लेकिन वह भी पूरे गांव में अपना सीना तान कर रहते थे कि उनकी बहन अब प्रोफेसर बनने जा रही थी।
यह अलग बात है कि बचपन में बच्चे आपस में बहुत झगड़ा करते हैं लेकिन उनकी नौक-झौंक व झगड़ों में भी कितना प्यार होता है, यह दूर रहकर ही समझ में आता है। अब इस बात को रन्नो व जग्गो भी समझ गये थे । जब वह कामिनी से पूरे पांच वर्ष अलग रहे थे। इन्हीं खट्टे-मीठे सपनों को देखते-देखते रात के किस पहर में जाकर वह कब गहरी नींद में उतर गये यह पता भी न चला।
सुबह पास के कमरे से आती घंटियों की आवाज़ ने रन्नो को जगा दिया । वह झट से उठ कर बैठ गया और झकझोर कर जग्गो को भी जगाया और आंखे फाड़-फाड़ कर इधर उधर देखने लगा । घड़ी सुबह के सात बजा रही थी । वह दौड़कर मां के पास गया जो कि कमरे में अपने गिरधर-गोपाल को भोग लगाने में व्यस्त थीं । मां को जोर से हिलाते हुए कहने लगा ‘‘तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं आज कितनी देर हो गई है…..पापा अकेले ही दीदी को लेने स्टेशन चले गये क्या ?’’ आज उसको हड़बड़ाता देख मां भी बड़े अचरज में थी कि जो लड़का सुबह हजारों आवाज़ लगाने पर भी नहीं जागता था वह आज अपने आप उठकर इधर-उधर बौखलाया-सा घूम रहा है जैसे कोई कीमती चीज़ खो गई हो। कमला ने आखिर डांटते हुए कह ही दिया ‘‘क्या बात है..? क्यों इतना परेशान हो रहा है ? कम्मो का सुबह फोन आ गया था कि वह अपने आप घर आ जाऐगी। हम लोग परेशान न हों। वह दोपहर की गाड़ी से आऐगी। तेरे पापा अभी खेत पर गये हैं।’’ इतना सुनते ही रन्नो ने चैन की सांस ली। जैसे उसकी खोई हुर्ई बेशकीमती प्यारी चीज़ मिल गई हो।
कामिनी को घर देखकर मां और भाई बहुत खुश थे। रन्नो ने बताया कि ‘‘हम तुम्हें स्टेशन लेने आने वाले थे कि तुम…..।’’ उसकी बात को बीच में काटते हुए कामिनी कहने लगी ‘‘वह क्या है न कि संंदीप इसी ट्रेन की टिकिट ले आया था फिर दोनो ही साथ आ गये।’’ मां की लगातार संदेह भरी नज़रों को देखते हुए कामिनी सिर्फ इतना ही बता पाई कि संदीप उसका मित्र है। उसके साथ ही पढ़ता है और हमारे गांव से आगे वाले गांव का रहने वाला है। इसकी आप लोगों से मिलने की इच्छा थी इसलिए मेरे साथ आ गया। रात को खाने के समय संदीप से बात-चीतों के दौरान ही खैमी को पता चला कि वह होशियारपुर का रहने वाला है जो कि दौलतपुर से पच्चीस किलोमीटर आगे था।
कामिनी सारा दिन कभी अपने कम्प्यूटर पर कभी किताबों के साथ या फोन पर व्यस्त रहने लगी थी। यदा-कदा कोई घर में आ जाए तो उससे रामा-किशना हो जाया करती थी। लेकिन इस बीच संदीप का कई बार कामिनी से मिलने गांव आना-जाना लगा रहा था। जिससे गांव के लोग दबी ज़ुवान में कामिनी के बारे में उल्टी-सीधी बातें कहने भी लगे थे। एक दिन खेत पर जाते समय खैमी को रोक कर गांव के ही फुल्लन चाचा ने पूछ लिया ‘‘खैमी एक बात बता वैसे तो तुम्हारे घर में कमला बड़ी धरम-करम वाली है और इस जाटव के लड़के को कैसे घर में खिला-सुला रही है…? अब एक बात मेरी मान, बेटी खूब पढ़ ली है। अच्छा-सा लड़का देखकर उसकी शादी कर दे।’’ इतना कहते ही फुल्लन चाचा चलते बने। शाम को घर आकर खैमी ने कामिनी से कहा तो वह बोली ‘‘पापा आज तक मुझे इसकी जाति जानने की ज़रुरत नहीं पड़ी और मुझे क्या फ़र्क पड़ता है कि वह कौन-सी जाति का है, बस इन्सान अच्छा है। मेरे लिए इतना ही जानना बहुत है।’’ ‘‘लेकिन बेटा …..?’’ अभी खैमी इतना ही बोल पाया था कि बेटी ने प्यार से उसके मुंह पर अंगुली रखकर उसे चुप कर दिया था। लेकिन खैमी का दिमाग चुप नही था। वह तेजी से कामिनी के लिए लड़का देखने में जुट गया था। इसी कारण कई रिश्तेदारों के फोन आना भी शुरु हो गये थे।
एक दिन गुस्से में कामिनी ने सबके सामने कह भी दिया कि जब तक मेरी पी0 एच0 डी0 नहीें हो जाती मैं शादी नहीं करुंगी। आप लोग चाहे कुछ भी कर लीजिए । इस गर्मा-गर्मी के बीच पिता ने भी फ़रमान जारी कर दिया कि वह अब लौटकर कॉलेज नहीं जाएगी जो कुछ करेगी यहीं रह कर करेगी। कामिनी चुप हो गई और अपनी तैयारी में जुट गई। उसे नैट की परीक्षा दिलवाने खैमी स्वयं ले कर गया था। उसे रिजल्ट की चिन्ता होने लगी थी क्योंकि उसकी जि़न्दगी इसी रिजल्ट पर निर्भर थी। घर में शादी कीे बात-चीत, खोज-खबर और तेज हो रही थीं। वह जानती थी जिस मान-मर्यादा, रस-रसूख वाले ये लोग हैं अपनी बेटी को अपने से ज़्यादा ही संपत्ति वाले लोगों से रिश्ता करना पसंद करेंगे। वरना इनकी नाक कट जाएगी इसी खोज-बीन में लगातार समय निकल रहा था। जो कि कामिनी के हित में था। एक दिन अचानक कॉलेज से लैटर आया कि उसने नैट की परीक्षा पास कर ली है। वह बहुत खुश थी। उसने अपने पिता से कहा ‘‘पापा मैंने नैट पास कर लिया है। आप मेरे प्रोफेसर बनने की प्रक्रिया पूरी करवा दीजिए। प्लीज़ पापा मना मत करना यह मेरी जि़न्दगी का सवाल है। ऐसा मौका दोबारा नहीं मिलेगा।’’ खैमी ने कोई जवाब नहीं दिया। वह उसके सामने हाथ जोड़ती रही लेकिन खैमी पत्थर की मूरत बना सारी बातें सुन रहा था। वह रिरियाकर कह रही थी। ‘‘पापा ! बोलो, आप मेरी पी0 एच0 डी0 करवा देंगे न…. बोलो पापा। प्लीज़ आप कुछ तो बोलो …….।’’ खैमी सिर्फ इतना ही बोल पाया था ‘‘नहीं …..अब सारी पढ़ाई अपने घर जा कर करना।’’ कामिनी के रोने का, गिड़गिड़ाने का खैमी पर कोई असर नहीं हो रहा था । पास बैठे दोनाें बेटे व पत्नी खैमी के इस रुप को पहली बार देख रहे थे। वास्तव में बेटों को आज पहली बार खैमी एक लड़की का पिता नज़र आ रहा था। कमरे के दरवाज़े पर खड़ी कमला लगातार यही सोच रही थी। कि ये बेटी के चेहरे पर जरा सी परेशानी की लकीर आ जाने पर अपनी रातों की नीद खो देेते थे, आज ये इतने पत्थर दिल कैसे हो सकते हैं ?
कामिनी अपने पिता के सामने खूब रोती व गिड़गिड़ाती रही, हाथ पैर जोड़ती रही लेकिन उसने एक न सुनी और एक आर्डर पास कर दिया, ‘‘आज से यह घर से बाहर कहीं नहीं जाएगी। कामिनी रात भर अपनी मां के पास लेटी रोती सिसकती रही। बेबस व लाचार मां उसके आंसू पौंछने के सिवाय कुछ न कर सकी। कामिनी सारा दिन उदास रहने लगी लेकिन वह अपनी हार मानने को तैयार नहीें थी। एक दिन मौका देखकर वह संदीप के साथ घर छोड़कर हमेशा के लिए शहर चली गई। कमला ने मना किया तो कहने लगी ‘‘प्लीज़ मम्मी मुझे जाने दो, मैं तुम्हारी तरह घुट-घुटकर इन रईसजादों के बीच मरना नहीं चाहती। मैं खुले आसमान में जीना चाहती हूं।’’ कमला ठगी-सी अपनी बेटी को जाता हुआ देखती रही।
कामिनी के जाने की खबर पूरे गांव में फैल गई। खैमी उसे लेने शहर भी गया तो उसने गांव लौटने से साफ मना कर दिया और बोली ‘‘अब मैं संदीप के साथ ही रहुंगी।’’ खैमी भी अपने सारे रिश्ते नाते तोड,़ गांव कभी न लौटने की चेतावनी देकर वापस आ गया। रोते-झीकते पूरा परिवार कामिनी को भूल भी गया और बेटी न होने के संतोष के साथ ही अपने दिन गुजारने लगा।
लेकिन…. आज कामिनी को वापस घर पर देख कर उसका व उसके बेटों का खून खौलने लगा। जैसे-तैसे करके तो वह खोई हुई इज़्जत को वापस ला रहे थे। पता नही किस-किस तरह की बातें समझाकर लोगों का विश्वास हासिल कर रहे थे कि दोबारा कामिनी ने आकर उस थोड़ी बहुत उग आई नाक को फिर काट दिया। हां…. मां की आंखों से पानी ज़रुर टपक रहा था। जब से कामिनी आई थी। वह लगातार उसको देखकर रोए जा रही थी । वह इतनी हिम्मत भी न जुटा सकी कि एक बार अपनी बेटी को गले से लगा पाती। अपने गुस्से को संयत करते हुए खैमी ने पूछ ही लिया ‘‘यहां क्यों आई है……? हमारा तेरा रिश्ता तो उसी दिन खत्म हो गया था। जिस दिन तू घर छोड़कर गयी थीे। अब यहां से चुपचाप चली जा।’’
‘‘चली जाउंगी लेकिन पहले मेरा हक़ मुझे दे दो।’’
इतना सुनते ही छोटा भाई चिल्लाकर बोला ‘‘तेरा यहां कुछ भी नहीं है।’’ कामिनी ने अपने गुस्से को काबू में करते हुए कहा ‘‘क्याें नहीं है….? जो तुम्हारा है, वह मेरा भी है। सबका बराबर का हिस्सा है….., मुझे मेरा हिस्सा चाहिए।’’ इतना सुनते ही बड़ा भाई लाठी लेकर कामिनी की तरफ दौड़ा।
कामिनी ने हाथ के इशारे से उसे रोकते हए कहा ‘‘ऐसी ग़लती मत करना, तुमको क्या लगता है, मैं इतनी बेबक़ूफ हूं जो अकेली चली आती। मुझे पता था तुम लोग मुझे मार सकते हो, इसलिए मैं पहले ही पुलिस प्रोटैक्शन के साथ यहां आई हूं। मैंने घर में घुसते ही तुम लोगों के हाव-भाव देख लिए थे। उसी समय अपने फोन से यहां बैठे-बैठे ही सिर्फ एक बटन दबाया था। यह पुलिस को यहां आने का सिग्नल था। अगर मेरी बात आप लोगों को झूठी लग रही है तो तुम गेट खोलकर देख सकते हो।’’
बाहर पुलिस को खड़ा हुआ देख रन्नो का गर्म खून आधा ठंडा पड़ गया और एक अजीब-सी खीझ लिए अन्दर वापस आ गया। अभी वे तीनों बाप-बेटे कुछ सोच पाते कि तभी मुखिया गांव के कुछ लोगों के साथ खैमी के घर में घुस आया। मुखिया के अन्दर घुसने के साथ ही पुलिस का दारोगा भी उन के पीछे-पीछे अन्दर आ गया। मुखिया के आवाज़ लगाने के साथ ही तीनों लोग बाहर आ गये। मुखिया के तमतमाते हुए चेहरे को देखकर खैमी ऊपर से नीचे तक कांपने लगा । वह सिर्फ इतना ही पूछ पाया था कि ‘‘क्या बात है मुखिया जी आप इस तरह ……?’’
खैमी के इस तरह पूछने पर मुखिया गरज कर बोला ‘‘कुछ और बताने को रह गया है ? कल रात से से ही तूने उस रांड़ी को घर में छुपा कर रखा है। आखिर तू करना क्या चाहता है ? सारा गांव तेरी तरफ आंखें उठाए देख रहा है। तूने कोई काम ऐसा नहीं किया है जिससे थोड़ा सुकून मिला पाता। तू चाहता तो रात में ही उसका काम तमाम कर देता मगर नहीं, अब भी, तेरा बेटी से प्यार उमड़ रहा है। इतनी कालिख मुंह पर पोत कर चली गई क्या वह कम थी ? जो अब दोबारा उसे घर में घुसा लिया। तुम लोग तो कुछ नहीं कर पाए, अब हमें ही कुछ करना पड़ेगा।’’ मुखिया गालियों की बौछार करते हुए खैमी से कामिनी को बाहर निकालने के लिए कहने लगा।
मुखिया जी की आवाज़ सुनते हीे कामिनी दौड़ कर बाहर आई और बोली ‘‘मुखिया जी अपनी ज़वान संभाल कर बात करें, आप मुखिया हाेंगे इस गांव के, यहां के लोग ही आपकी गालियां सुन सकते हैं, अगर एक लफ्ज़ और मुंह से निकाला तो सारी उम्र जेल में सड़ा दूंगी।’’ वह दारोेगा से मुखिया को समझाने के लिए कहने लगी। कामिनी की बात सुन कर दारोेगा मुखिया के कान में फुसफुसाने लगा। दारोगा की बात पर मुखिया जोर से हंसा और बोला ‘‘अरे देखो भाई लोेगो अब हमें यह दो टके का दारोगा कानून बताएगा।’’ दारोगा मुखिया के सामने भीगी बिल्ली बना खड़ा रहा। मुखिया कामिनी की तरफ मुखातिब होकर बोला अब हो गई न तुझे तसल्ली इस दारोगा की इतनी हिम्मत नहीं कि हमारे सामने कुछ बोल सके। इसका मुंह तो हमने पहले से ही बंद कर दिया है।
मुखिया ने उन बाप-बेटों से कामिनी को उसी पंच वृक्ष के नीचे ले जाने का आदेश दिया जहां पर गांव की हर अच्छी-बुरी चीज़ का फैसला होता है। इस बार थोड़ी हिेम्मत दिखाते हुए दारोगा मुखिया को एक तरफ कोने में ले जाकर समझाने लगा ‘‘मुखिया जी ! इस बार मामला सिर्फ हम तक सीमित नहीं है, अब मैं भी कुछ नहीं कर पाउंगा, आॅर्डर सीधे केन्द्र सरकार से आए हैं। रात को ही एस एस पी साहब के पास फोन आ गया था। उन्हीं के आदेश पर मैं यहां आया हूं। आप कोई काम ऐसा मत करना जिससे मुझे……।’’
मुखिया ने दारोगा की बात को हवा में उड़ा दिया और साथ में आए सभी लोगाें व पंचों को पंच वृक्ष पर इकट्ठा करने का आदेश देकर खुद उसी तरफ चल दिया। धीरे-धीरे गांव के लोग उस चबूतरे के आस पास इकट्ठा होने लगे। कुछ लोग वहां बदले की भावना को लेकर बैठे थे तो कुछ लोगों के चेहरों पर एक सन्तोष की लहर दौड़ रही थी। जो कभी उनकी बेटी के साथ हुआ था वही अब खैमी की बेटी के साथ होगा। बाकी लोगाें के लिए तो यह सिर्फ एक मनोरंजन था जो कि चुटकियां ले-लेकर हंस रहे थे। कामिनी को खींच कर ले जाने के लिए जैसे ही जग्गो ने उसका हाथ पकड़ा उसने जग्गो का हाथ एक तरफ झटक दिया और स्वयं चलने के लिए तैयार हो गई। कामिनी को देखने के लिए गांव की सभी गलियों में भीड़ लगी थी। वह आज भी उसी आत्मविश्वास के साथ चल रही थी जैसे पहले गांव में घूमती थी। उसके चेहरे पर वही तेज था जो पहले था। गांव की सभी औरतें उसे देख कर हैरान थीं कि वह काल के गाल में होते हुए भी तनिक भी भयभीत न थी। आपस में बतियाती कुछ लड़कियां उसकी हिम्मत की दाद दे रहीं थीं। वहीं कुछ औरतें उसके इस कृत्य को बेहयाई मान कर उसे गालियां भी दे रहीं थीं। इन सब की परवाह किए बगैर वह अपनी उसी रफ्तार से चली जा रही थी। बरगद के वृक्ष के नीचे बने चबूतरे पर सामने पांच व्यक्ति कुर्सियों पर बैठे थे। जिनमें एक मुखिया भी था। कुछ लोेग चबूतरे के दोनों तरफ भी बैठे थे । वहीं आकर कामिनी भी खड़ी हो गई। बिना लाग लपेट के बात को शुरु करते हुए उन्ही पंचों में से एक व्यक्ति कामिनी से कहने लगा ‘‘कम्मो ! जो तूने किया उसकी सजा को जानते हुए भी तू यहां लौटकर क्यों आई…? अगर तुझे लगता है कि खैमी तुझे बचा लेगा और दोबारा से तू इस गांव में रहेगी तो यह तेरी भूल है। तूने जो किया है उसकी सजा तो तुझे भुगतनी पड़ेगी, वरना इस गांव की प्रत्येक बहू-बेटियों की हिम्मत इतनी बढ़ जाएगी कि पहले वे भाग कर जाऐंगी और फिर यहां आकर रहने लगेंगी। हमारे होते हुए यह संभव नहीं है।’’
कामिनी भरी पंचायत में खड़ी होकर चारों तरफ हाथ घुमाती हुई बोली ‘‘यहां जितने भी लोग बैठे हैं मैं उन सब की समझ साफ करना चाहती हूं कि मैं यहां से रात में भाग कर नहीं गई थी। मैं अपनी मर्जी से सारे गांव के सामने दिन में अपनी मां से कहकर गई थी। वह भी अपनी पढ़ाई पूरी करने। अगर आप लोेग यह समझते हैं कि मैं यहां रहने आई हूं तो तुम लोगों की यह गलत फहमी है। मैं अपने पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा लेने आई हूं। मैं चाहती हूं कि मेरे पिता की तीनों संतानो को बराबर की संपत्ति बांट कर मेरे हिस्से की मुझे दे दी जाय। मैं यहां से चली जाउंगी। बस इतनी सी बात आप लोगों की समझ में नहीं आ रही है।’’
इतना सुनते ही दोनों भाई भरी पंचायत में शेरों की तरह दहाड़ने लगे ‘‘अगर संपत्ति के लिए जरा भी मुंंह खोला तो यहीं काट डालेंगे, यह संपत्ति हमारी है।’’ दोनों तरफ से तनातनी को देखते हुए पंचो ने दोनाें भाइयों को चुप रहने का आदेश दिया। बहुत देर तक चुप रहने के बाद अपनी चुप्पी को तोड़ते हुए खैमी बोला -‘‘अगर तुम्हें किसी ज़रूरी काम के लिये चार-छः लाख रूपये की ज़रूरत हो तो मैं तुझे अभी देने को तैयार हूँ। इसके अलावा तुझे फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी। तू जो भी चाहे कर ले।’’
‘‘मुझे भीख में तुम्हारे ये पैसे नहीं चाहिये। इन पैसों को अपने इन दोनों बेटों को दे देना, जिससे ये कुछ दिन और अय्यासी कर लेंगे। मुझे सिर्फ मेरा हिस्सा चाहिए घर में से और खेत में से भी। कामिनी अपनी आवाज़ ऊँची करती हुई कह रही थी। इधर गाँव में धीर-धीरे पुलिस का घेरा भी बढ़ता जा रहा था। चारों तरफ पुलिस ही पुलिस दिखायी दे रही थी। गाँव पुलिस की छावनी में तब्दील होने लगा था। काफी देर की बहस व जद्दो-जहद के बाद सारे पंच अब एक ही बात पर अड़े हुए थे कि ‘‘किस कानून में लिखा है कि शादी हो जाने के बाद पिता के खेत में लड़की का हिस्सा बरकरार रहता है। लड़की इसकी हकदार सिर्फ शादी से पहले ही होती है और तुम ……।’’
उनकी बात को बीच में ही काटती हुई कामिनी चिल्लाकर कहने लगी । ’’मैं शादी-शुदा नहीं हँू। मैंने कोई शादी नहीं की है। मैं जानती हँू इस कानून को इसलिये अपना हक़ लेने आयी हूँ। अभी वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पायी थी कि खैमी बीच में ही बोल पड़ा ‘‘तुम तो यहाँ से संदीप के साथ……..?’’ हां गयी ज़रूर थी उसके साथ लेकिन मैंने उसके साथ शादी नहीं की है।’’ इसी बात पर उग्र होता उसका भाई रन्नो पंचों की तरफ मुखातिब होकर बोला ‘‘अभी तक नहीं की है तो अब कर लेगी उस नीच जात के साथ शादी। जिससे हमारी संपत्ति का एक बहुत बड़ा हिस्सा उस कमीन के पास चला जायेगा। अगर यही होता रहा इस देश में तो ये नीच लोग हमारी लड़कियों को बहला फुसलाकर हमारी ज़मीनों पर अपना अधिकार कर लेंगे। आज तक सिर झुकाकर बात करने वाले ये लोग हमारी बराबरी करेंगेें और जरा सा भी कुछ कहने पर हमारे सामने सीना तान कर खड़े हो जायेंगे। मैं किसी भी कानून को नहीें मानता । यह हमारे पूर्वजों के खून पसीने की कमाई है। हम इसे यूँ ही बर्बाद नहीं होने देंगे। जो भी इस संपत्ति की तरफ आँख उठाकर देखेगा। उसके टुकड़े-टुकड़े कर देंगे। अब पंचों से मेरी विनती है कि इस बदचलन लड़की को कठोर से कठोर सजा सुनाई जाये जिससे इस गाँव के अलावा ंआस-पास के गाँव की कोई भी लड़की इस तरह की हिमाकत न करे।’’
कामिनी तन कर अपने भाइयों के सामने खड़ी हो गयी और जोर-जोर से चिल्लाकर कहने लगी ‘‘आँखे घुमाकर चारों तरफ देख लो अगर किसी ने भी मुझे छूने की कोशिश की तो अपने अंजाम का जिम्मेदार वह खुद ही होगा। यह मत समझना कि ये दारोगा तुम्हारे साथ है या सारी पुलिस फोर्स तुम्हारे इशारों पर नाचेगी। मैं रात से लेकर अब तक देश के सभी महिला संगठनों व राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार मंत्रालय को सूचित कर चुकी हूँ, उन्हीं के दबाब के चलते यह फोर्स यहाँ भेजी गयी है। रही बात संपत्ति पर हिस्से की तो यह देखो मेरे पास कोर्ट के आॅर्डर हैं।’’ उसने भरी पंचायत में सारे गाँव के सामने उन कागजों को लहराया। कामिनी की तरफ बढ़ती भीड़ के घेरे को तोड़ते हुए पुलिस ने कामिनी को अपने संरक्षण में ले लिया और खैमी को अपनी जीप में बैठाकर कचहरी की तरफ चल दी। गाडि़यों की उड़ती हुई धूल में पंच वृक्ष कहीं दूर ओझल हो गया था।

अनीता द्वारा लिखित

अनीता बायोग्राफी !

नाम : अनीता
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अनीता चौधरी 
जन्म - 10 दिसंबर 1981, मथुरा (उत्तर प्रदेश) 
प्रकाशन - कविता, कहानी, नाटक आलेख व समीक्षा विभिन्न पत्र-पत्रकाओं में प्रकाशित| 
सक्रियता - मंचीय नाटकों सहित एक शार्ट व एक फीचर फ़िल्म में अभिनय । 
विभिन्न नाटकों में सह निर्देशन व संयोजन व पार्श्व पक्ष में सक्रियता | 
लगभग दस वर्षों से संकेत रंग टोली में निरंतर सक्रिय | 
हमरंग.कॉम में सह सम्पादन। 
संप्रति - शिक्षिका व स्वतंत्र लेखन | 
सम्पर्क - हाइब्रिड पब्लिक  स्कूल, दहरुआ रेलवे क्रासिंग,  राया रोड ,यमुना पार मथुरा 
(उत्तर प्रदेश) 281001 
फोन - 08791761875 

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