बंदिशों में ‘सोशल मीडिया की स्त्री’: आलेख (अनीता मिश्रा)

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अनीता 451 11/17/2018 12:00:00 AM

निसंकोच हमारे समय और सामज ने तरक्की के कई पायदान और चढ़ लिए हैं ! तब सहज ही यह सवाल मन में आ खड़ा होता है कि क्या तरक्की में संवेदना के स्तर पर मानसिक वैचारिकी का कोई पायदान भी हम चढ़ पाए हैं ? इसके अलावा क्या इन प्रगति के सोपानों को संपूर्ण समाज चढ़ रहा है या आधी दुनिया के बिना ही हमने पूर्ण समाज की संज्ञा से सुशोभित भर कर दिया है ? वास्तविक दुनिया से चलकर आभासी दुनिया तक के सफर में क्या हम स्त्री की मानवीय रूप में समान, सहज और स्वतंत्र अभिव्यक्ति को सुनने, पढने और इंसानी रूप में स्वीकारने की क्षमता भी विकसित कर पाने में सफल हुए हैं ? कुछ ऐसे ही मानवीय सवालों से जूझता ‘अनीता मिश्रा’ का यह आलेख……

बंदिशों में ‘सोशल मीडिया की स्त्री’

अनीता मिश्रा

“जिमि स्वतंत्र भई ,बिगरहिं नारी” जब कई सौ साल पहले तुलसीदास जी ने ये कहा था तब उन्हें अंदाज़ भी नहीं होगा कि बहुत साल बाद नारियां खूब स्वतंत्र होकर अपनी बात कहेंगी । और ऐसी स्त्रियों को इतने साल बाद भी बिगड़ा हुआ माना जायेगा।
स्त्रियों को पहले भी अपनी बात कहने पर कोई रोक नहीं थी। लेकिन समाज में जिस तरह स्त्री की स्थिति दोयम दर्जे की रही है वो अपनी बात को कारगर ढंग से सब तक नहीं पंहुचा पाती थी। हर स्त्री लेखक या पत्रकार नहीं है बहुत सारी ऐसी हैं जिनके पास बहुत कुछ कहने को था लेकिन वो किससे कहें जो उनकी सुने और समझे । सोशल मीडिया ऐसे में स्त्रियों के लिए एक नयी दुनिया का दरवाजा खोलता है जहाँ उन्हें अपनी बात कहने के लिए किसी की जी हुजूरी करने या अहसान तले दबने की जरुरत नहीं है ।
“बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे” फैज़ साहेब की ये लाइन सोशल मीडिया की दुनिया में मेरा भी मन्त्र रही है। इस प्लेटफार्म पर निडर होकर जैसा चाहा वैसा लिखा । मुझे और मेरी तमाम मित्रों को लगा था कि ये दुनिया ऐसी है जहाँ कोई याज्ञवल्कय हमें रोकने नहीं आएगा कि रुको गार्गी तर्क मत करो ।
हमारा ये अंदाज़ गलत था यहाँ एक नहीं हज़ार ऐसे लोग थे जिन्हें हम जैसी मुखर लड़कियां रास नहीं आ रही थी। मेरे लिए सोशल मीडिया प्रिंट मीडिया से अलहदा एक नए किस्म का अनुभव रहा। प्रिंट में मैं पढने वालों की डायरेक्ट प्रतिक्रिया से मुक्त थी। लेकिन सोशल मीडिया पर सारी प्रतिक्रियाएं फेस करनी होती हैं। उनके जवाब देने पड़ते हैं। यहाँ तक कि निहायत भद्दी गलियां सुननी पड़ जाती हैं लोगों को अगर आपकी बात पसंद नहीं आयी तो आपकी पोस्ट पर वाहियात कमेन्ट करेंगे। अश्लील बातें लिखेंगे और स्त्री होने पर जाहिर है जो लोग आपको जानते नहीं हैं वो भी आपके चरित्र का पोस्टमार्टम कर डालेंगे ।
मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ जब मैंने राजनीतिक विषयों और धार्मिक पाखंड पर लिखा। पहले तो बहुत लोगों ने कहा कि इन सब पचड़ों में मत पड़ो कुछ और पोस्ट लिखना चाहिए । लेकिन मुझे लगा कि हम लड़कियों को राजनीति पर अपनी राय जरूर रखनी चाहिए। रियल दुनिया में भी लड़कियां राजनीति में अपने विचार कम ही देती हैं। इसलिए मैंने किसी की नहीं सुनी लिखना जारी रखा। जिसका खामियाजा मुझे भुगतना पड़ा । जिन्हें मेरी बात पसंद नहीं आयी उन्होंने भद्दी बातें लिखना शुरू कर दिया । जिन लोगों मैं कभी मिली तक नहीं उन्होंने भी लिख दिया मैं इनके चरित्र के बारे में जानता हूँ क्योंकि ये एक लाइन ही किसी भी स्त्री के बारे पर्याप्त होती है बाकी कल्पना लोग खुद कर लेते हैं।
एक समय ऐसा भी आया कि कुछ लोगों ने इस कदर तंग किया कि मुझे बहुत तनाव हो गया । घर के सदस्यों ने भी दबाव डालना शुरू किया कि मुझे हल्की –फुल्की बातें लिखनी चाहिए। दोस्तों ने यहाँ तक सलाह दी कि कुछ दिन के लिए अकाउंट ही बंद कर दो । ये सब करीबी लोग थे जिन्हें डर लग रहा था कि कहीं मैं किसी परेशानी में ना पड़ जाऊं। क्योंकि कई लोगों ने लिखा कि वो ऐसा मजा चखाएंगे कि याद रहेगा । लेकिन ये सब धमकियाँ मुझे डरा नहीं पायीं। मैंने नोटिस किया कि ये धमकी देने वाले लोगों का मकसद ये सब करके वर्चुअल दुनिया से हम जैसी मुखर लड़कियों को भगाना था । लेकिन इन सबकी हर वक़्त तीखी बातें सुनना भी मुश्किल हो रहा था इसलिए कमेन्ट के ऑप्शन में पब्लिक हटा दिया । इससे मुझे सिर्फ ये राहत मिली कि मैं गलियां देने वालों को लिस्ट से हटा कर उन्हें प्रतिक्रिया से वंचित कर दिया ।
मेरी ही तरह फेसबुक पर एक्टिविस्ट कविता कृष्णन को , कई अवार्ड विनिंग कार्टूनिस्ट कनिका मिश्रा को भी ठीक इसी तरह परेशान होना पड़ा । यही नहीं और भी तमाम महिलाओं को ऐसी बातें पब्लिक प्लेटफार्म पर सुननी पड़ती कि शर्मिदा होकर भाग जाने का मन करने लगे । गुरमेहर कौर ने ऐसा किया भी जब उसे अपना अकाउंट डीएक्टिवेट करके काफी दिनों के लिए ब्रेक लेना पड़ा।
स्त्रियों के प्रति ये रवैया अपने देश तक सीमित नहीं रहा बल्कि मारिया शारापोवा को भारत के लोगों से तमाम गालियां सिर्फ इसलिए सुननी पडी कि उसने कह दिया था वो सचिन तेंदुलकर को नहीं जानती है । ये एक अजीब माहोल बनता जा रहा है जहाँ कोई बिलकुल कुछ सुनने को तैयार नहीं है । स्त्री सेलेब्रेटी हो या सामान्य सबके साथ बात पसंद ना आने पर सामंती युग जैसा व्यवहार । बिना इस बात की परवाह किये कि ये एक सार्वजनिक मंच है यहाँ एक शालीनता बनाकर रखनी चहिये ।
फिल्म दंगल की जायरा वसीम , टी वी एक्ट्रेस श्रुति शाह , क्रिकेट स्टार धोनी की पत्नी साक्षी धोनी , नेत्री प्रियंका चतुर्वेदी , अलका लाम्बा , शेहला रशीद आदि भी अपनी पोस्ट या मात्र एक ट्वीट के लिए ट्रोल्स का शिकार बनी । अरुंधती राय , बरखा दत्त को स्थाई रूप से बेहूदा कमेन्ट और गलियों का शिकार होना पड़ता है । अभी ट्रिपल तलाक के विरोध के सिलसिले में लिखने वाली कई लड़कियों को भी सोशल मीडिया पर बहुत अपमानित होना पड़ा है। इनमे से कई लोग रीएक्ट किये बिना अपना काम करते रहते हैं ।
मैं खुद भी शुरुआत में हर लड़ने वाले व्यक्ति से भिड़ जाती थी । बहुत सवाल -जवाब करती थी। पर मैंने महसूस किया कि मेरे इस प्रयास से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है बल्कि मेरी उर्जा और समय बर्बाद हो रहा था । इसके बाद मैने तय किया कि अपनी बात लिखकर मुझे शांत रहना है । कितनी भी खराब बातें कोई बोले मुझे नियंत्रण नहीं खोना है ।
हलाकि कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनमे चुपचाप न सुनकर एक्शन लेना चाहिए। हाल में नॉएडा की एक पत्रकार साक्षी ने यही किया उनकी पोस्ट पर किसी ने अपमानित करने वाले बेहद घटिया शब्द का प्रयोग किया तो उन्होंने पुलिस में शिकायत की और उस व्यक्ति को जेल भेजा गया ।
खुद सोशल मीडिया भी कभी –कभी एक्शन लेता है इन दिनों गायक अभिजीत का ट्वीटर अकाउंट उनके एक भद्दे ट्वीट की वजह से सस्पेंड कर दिया गया । ये ट्वीट उन्होंने शेहला रशीद पर किया था जिसकी भाषा बेहद आपत्तिजनक थी ।
कह सकते हैं कि दबंग , बोल्ड , मुखर लड़कियों के लिए वर्चुअल दुनिया भी रियल दुनिया जैसी ही कठिन है । जहाँ उन्हें कदम –कदम पर रोकने के लिए तमाम बाधाएं हैं । कभी ये बाधाएं खुलकर गलियों के रूप में हैं तो कभी ये बाधाएं नैतिक शिक्षा के रूप में हैं ।
यहाँ भी चरित्र पर ही सबसे पहले उंगली उठा दी जाती है जो रेप की धमकी तक में बदल जाती है । इन सबके बाद भी लगातार बिना डरे स्त्रियां अपनी बात लिख रही हैं । धमकाने वालों से कैसे निपटना है ये सीख कर लिखना जारी है ।
चाहे कोई उन्हें बिगड़ा हुआ माने या अच्छा माने । सोशल मीडिया के रूप में उन्हें एक ऐसा आसमान मिला है जहाँ वो निडर होकर अपने विचारों के परिंदों को खूब उड़ाती हैं । जिन्हें ये निर्भीक लड़कियां चुभती हैं ये उनकी समस्या है । हम लोग तो पूरी धमक के साथ यहाँ मौजूद रहने वाले हैं।

अनीता द्वारा लिखित

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