रंग मंच कि दुनिया में प्रवेश करने से पहले आपने ‘दिलशाद सैदानपुरी‘ के नाम से गज़लें लिखना शुरू किया और यह लेखन का सफ़र आज भी जारी है | हमरंग के मंच से कुछ गज़लें आप सभी पाठकों के लिए, हमरंग पर आगे भी यह सफ़र जारी रहेगा ….| – संपादक
धोखा
किस-किस की उतारी जाए, चेहरे पर पड़ी नकाब
जिसको देखा करीब से, वो झूठे नजर आने लगे
कल तलक जो खुद को, जताते थे हमारा रहनुमा
फिलवक्त वो हम गरीबों, से ही किनारा करने लगे
हमने तो सौंपी थी सत्ता, उनको हमदर्द जानकर
सत्ता हाथ आते ही वो, हमें ठेंगा दिखाने लगे
है कौन जिसने हमारी, बेकसी का न उठाया फायदा
बारी जब देने की आई, हमें ही रास्ता दिखाने लगे
जिसने भी है अब तलक, हमको लिफाफे में लिया
उनकी कोशिश कोशिश रही, कि अपना नजर आने लगे
अब तो मुश्किल होगा, भरोसा किसी पर भी करना
अब तो हमको सारे के सारे, दोगले नजर आने लगे
माँ
बच्चे का दिल माँ सा नहीं होता
बस इसी कारण खुदा नहीं होता
माँ क्या होती है पूछना कभी खुद से
हर सवाल अक्सर दूसरों से नहीं होता
कब झपकी तुमने पलक कब खोली आँखें
यह माँ से ज्यादा किसी को पता नहीं होता
तुम्हारे एक रोने पर जो खुद को वार देती है
ऐसा साफ़ दिल तो हमसफ़र का भी नहीं होता
कब लगी भूख और कब लगी प्यास तुम्हें
यह माँ से ज्यादा तुम्हें भी पता नहीं होता
मेरे आने तक आज भी बिना खाए बैठी रहती है
मेरे खाए बिना उनका निवाला हजम नहीं होता
आज की बात नहीं है ये बचपन से देखता आया हूँ
नींद में मेरे कमरे की लाइट खुद से ऑफ़ नहीं होता
मुझको बस इतनी सी बरकत चाहिए ज़िन्दगी से
अच्छा होता घर का कमरा उनके बिना नहीं होता