शेर की गुफा में न्याय: एवं अन्य लघुकथाएं (शरद जोशी)

कथा-कहानी लघुकथा

शरद जोशी 1116 11/18/2018 12:00:00 AM

हिन्दी के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी का जन्म 21 मई 1931 को उज्जैन, मध्यप्रदेश में हुआ था। शरद जोशी ने मध्य प्रदेश सरकार के सूचना एवं प्रकाशन विभाग में काम किया लेकिन अपने लेखन के कारण इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और लेखन को ही पूरी तरह से अपना लिया। आपने इन्दौर में रहते हुए समाचारपत्रों और रेडियो के लिए लेखन किया। इन्दौर में ही इनकी इरफाना सिद्दकी से जानकारी हुई जिनसे इन्होंने बाद में शादी की। आपके बड़े रचना संसार से पांच लघुकथाएं ……

शेर की गुफा में न्याय 

sharad

शरद जोशी
जन्म : 21 मई 1931, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
भाषा : हिन्दी
विधाएँ : व्यंग्य, फिल्म, धारावाहिक, नाटक
मुख्य कृतियाँ
व्यंग्य संग्रह : परिक्रमा, किसी बहाने, तिलिस्म, रहा किनारे बैठ, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, दूसरी सतह, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, यथासंभव, जीप पर सवार इल्लियाँ
फिल्म लेखन : क्षितिज, छोटी-सी बात, सांच को आंच नही, गोधूलि, उत्सव
धारावाहिक लेखन : ये जो है जिन्दगी, विक्रम बेताल, सिंहासन बत्तीसी, वाह जनाब, देवी जी, प्याले में तूफान, दाने अनार के, ये दुनिया गजब की
सम्मान- पद्मश्री, चकल्लस पुरस्कार, काका हाथरसी पुरस्कार
निधन- 5 सितंबर 1991, मुंबई

जंगल में शेर के उत्पात बहुत बढ़ गए थे. जीवन असुरक्षित था और बेहिसाब मौतें हो रही थीं. शेर कहीं भी, किसी पर हमला कर देता था. इससे परेशान हो जंगल के सारे पशु इकट्ठा हो वनराज शेर से मिलने गए. शेर अपनी गुफा से बाहर निकला – कहिए क्या बात है?

उन सबने अपनी परेशानी बताई और शेर के अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई. शेर ने अपने भाषण में कहा –

‘प्रशासन की नजर में जो कदम उठाने हमें जरूरी हैं, वे हम उठाएंगे. आप इन लोगों के बहकावे में न आवें जो हमारे खिलाफ हैं. अफवाहों से सावधान रहें, क्योंकि जानवरों की मौत के सही आंकड़े हमारी गुफा में हैं जिन्हें कोई भी जानवर अंदर आकर देख सकता है. फिर भी अगर कोई ऐसा मामला हो तो आप मुझे बता सकते हैं या अदालत में जा सकते हैं.’

चूंकि सारे मामले शेर के खिलाफ थे और शेर से ही उसकी शिकायत करना बेमानी था इसलिए पशुओं ने निश्चय किया कि वे अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे.

जानवरों के इस निर्णय की खबर गीदड़ों द्वारा शेर तक पहुंच गई थी. उस रात शेर ने अदालत का शिकार किया. न्याय के आसन को पंजों से घसीट अपनी गुफा में ले आया.

शेर ने अपनी नई घोषणाओं में बताया – जंगल के पशुओं की सुविधा के लिए, गीदड़ मंडली के सुझावों को ध्यान में रखकर हमने अदालत को सचिवालय से जोड़ दिया है

जंगल में इमर्जेंसी घोषित कर दी गई. शेर ने अपनी नई घोषणाओं में बताया – जंगल के पशुओं की सुविधा के लिए, गीदड़ मंडली के सुझावों को ध्यान में रखकर हमने अदालत को सचिवालय से जोड़ दिया है, ताकि न्याय की गति बढ़े और व्यर्थ की ढिलाई समाप्त हो. आज से सारे मुकदमों की सुनवाई और फैसले हमारे गुफा में होंगे.

इमर्जेंसी के दौर में जो पशु न्याय की तलाश में शेर की गुफा में घुसा उसका अंतिम फैसला कितनी शीघ्रता से हुआ इसे सब जानते हैं.

कला और प्रतिबद्धता

कोयल का कंठ अच्छा था, स्वरों का ज्ञान था और राग-रागनियों की थोड़ी बहुत समझ थी. उसने निश्चय किया कि वह संगीत में अपना कैरियर बनाएगी. जाहिर है उसने शुरुआत आकाशवाणी से करनी चाही. कोयल ने एप्लाय (आवेदन) किया. दूसरे ही दिन उसे ऑडीशन के लिए बुलावा आ गया. वे इमर्जेंसी के दिन थे और सरकारी कामकाज की गति तेज हो गई थी. कोयल आकाशवाणी पहुंची. स्वर परीक्षा के लिए वहां तीन गिद्ध बैठे हुए थे. ‘क्या गाऊं?’ कोयल ने पूछा.

गिद्ध हंसे और बोले, ‘यह भी कोई पूछने की बात है. बीस सूत्री कार्यक्रम पर लोकगीत सुनाओ. हमें सिर्फ यही सुनने-सुनाने का आदेश है.’

गिद्ध हंसे और बोले, ‘यह भी कोई पूछने की बात है. बीस सूत्री कार्यक्रम पर लोकगीत सुनाओ. हमें सिर्फ यही सुनने-सुनाने का आदेश है.’

‘बीस सूत्री कार्यक्रम पर लोकगीत? वह तो मुझे नहीं आता. आप कोई भजन या गजल सुन सकते हैं.’ कोयल ने कहा.

गिद्ध फिर हंसे. ‘गजल या भजन? बीस सूत्री कार्यक्रम पर हो तो अवश्य सुनाइए?’

‘बीस सूत्री कार्यक्रम पर तो नहीं है.’ कोयल ने कहा. ‘तब क्षमा कीजिए, कोकिला जी. हमारे पास आपके लिए कोई स्थान नहीं है.’ गिद्धों ने कहा.

कोयल चली आई. आते हुए उसने देखा कि म्यूजिक रूम (संगीत कक्ष) में कौओं का दल बीस सूत्री कार्यक्रम पर कोरस रिकॉर्ड करवा रहा है.

कोयल ने उसके बाद संगीत में अपनी करियर बनाने का आइडिया त्याग दिया और शादी करके ससुराल चली गई.

बुद्धिजीवियों का दायित्व

लोमड़ी पेड़ के नीचे पहुंची. उसने देखा ऊपर की डाल पर एक कौवा बैठा है, जिसने मुंह में रोटी दाब रखी है. लोमड़ी ने सोचा कि अगर कौवा गलती से मुंह खोल दे तो रोटी नीचे गिर जाएगी. नीचे गिर जाए तो मैं खा लूं.

‘लोमड़ी बाई, शासन ने हम बुद्धिजीवियों को यह रोटी इसी शर्त पर दी है कि इसे मुंह में ले हम अपनी चोंच को बंद रखें. मैं जरा प्रतिबद्ध हो गया हूं आजकल’

लोमड़ी ने कौवे से कहा, ‘ भैया कौवे! तुम तो मुक्त प्राणी हो, तुम्हारी बुद्धि, वाणी और तर्क का लोहा सभी मानते हैं. मार्क्सवाद पर तुम्हारी पकड़ भी गहरी है. वर्तमान परिस्थितियों में एक बुद्धिजीवी के दायित्व पर तुम्हारे विचार जानकर मुझे बहुत प्रसन्नता होगी. यों भी तुम ऊंचाई unh कौवे!’

इमर्जेंसी का काल था. कौवे बहुत होशियार हो गए थे. चोंच से रोटी निकाल अपने हाथ में ले धीरे से कौवे ने कहा – ‘लोमड़ी बाई, शासन ने हम बुद्धिजीवियों को यह रोटी इसी शर्त पर दी है कि इसे मुंह में ले हम अपनी चोंच को बंद रखें. मैं जरा प्रतिबद्ध हो गया हूं आजकल, क्षमा करें. यों मैं स्वतंत्र हूं, यह सही है और आश्चर्य नहीं समय आने पर मैं बोलूं भी.’

इतना कहकर कौवे ने फिर रोटी चोंच में दबा ली.

लक्ष्य की रक्षा

एक था कछुआ, एक था खरगोश जैसा कि सब जानते हैं. खरगोश ने कछुए को संसद, राजनीतिक मंच और प्रेस के बयानों में चुनौती दी- अगर आगे बढ़ने का इतना ही दम है, तो हमसे पहले मंजिल पर पहुंचकर दिखाओ. रेस आरंभ हुई. खरगोश दौड़ा, कछुआ चला धीरे-धीरे अपनी चाल.

जैसा कि सब जानते हैं आगे जाकर खरगोश एक वृक्ष के नीचे आराम करने लगा. उसने संवाददाताओं को बताया कि वह राष्ट्र की समस्याओं पर गम्भीर चिंतन कर रहा है, क्योंकि उसे जल्दी ही लक्ष्य तक पहुंचना है. यह कहकर वह सो गया. कछुआ लक्ष्य तक धीरे-धीरे पहुंचने लगा.

जब खरगोश सो कर उठा, उसने देखा कि कछुआ आगे बढ़ गया है, उसके हारने और बदनामी के स्पष्ट आसार हैं. खरगोश ने तुरंत आपातकाल घोषित कर दिया

जब खरगोश सो कर उठा, उसने देखा कि कछुआ आगे बढ़ गया है, मेरे हारने और बदनामी के स्पष्ट आसार हैं. खरगोश ने तुरंत आपातकाल घोषित कर दिया. उसने अपने बयान में कहा कि प्रतिगामी पिछड़ी और कंजरवेटिव (रूढ़िवादी) ताकतें आगे बढ़ रही हैं, जिनसे देश को बचाना बहुत ज़रूरी है. और लक्ष्य छूने के पूर्व कछुआ गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया.

क्रमश: प्रगति

खरगोश का एक जोड़ा था, जिनके पांच बच्चे थे.

एक दिन भेड़िया जीप में बैठकर आया और बोला – असामाजिक तत्वों तुम्हें पता नहीं सरकार ने तीन बच्चों का लक्ष्य रखा है. और दो बच्चे कम करके चला गया.

कुछ दिनों बाद भेड़िया फिर आया और बोला कि सरकार ने लक्ष्य बदल दिया और एक बच्चे को और कम कर चला गया. खरगोश के जोड़े ने सोचा, जो हुआ सो हुआ, अब हम शांति से रहेंगे. मगर तभी जंगल में इमर्जेंसी लग गई.

कुछ दिन बाद भेड़िये ने खरगोश के जोड़े को थाने पर बुलाया और कहा कि सुना है, तुम लोग असंतुष्ट हो सरकारी निर्णयों से और गुप्त रूप से कोई षड्यंत्र कर रहे हो? खरगोश से साफ इनकार करते हुए सफाई देनी चाही, पर तभी भेड़िये ने बताया कि इमर्जेंसी के नियमों के तहत सफाई सुनी नहीं जाएगी.

उस रोज थाने में जोड़ा कम हो गया.

दो बच्चे बचे. मूर्ख थे. मां-बाप को तलाशने खुद थाने पहुंच गए. भेड़िया उनका इंतजार कर रहा था. यदि थाने नहीं जाते तो वे इमर्जेंसी के बावजूद कुछ दिन और जीवित रह सकते थे.

शरद जोशी द्वारा लिखित

शरद जोशी बायोग्राफी !

नाम : शरद जोशी
निक नाम :
ईमेल आईडी :
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में :

अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.