यौन स्वतंत्रता, कानून और नैतिकता: आलेख (अरविंद जैन)
अरविंद जैन 3201 1/7/2019 12:00:00 AM
वर्तमान भारतीय समाज का राजनीतिक नारा है 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ', मगर सामाजिक-सांस्कृतिक आकांक्षा है 'आदर्श बहू'। वैसे भारतीय शहरी मध्य वर्ग को 'बेटी नहीं चाहिए', मगर बेटियाँ हैं तो वो किसी भी तरह की बाहरी (यौन) हिंसा से एकदम 'सुरक्षित' रहनी चाहिए। हालाँकि रिश्तों की किसी भी छत के नीचे, स्त्रियाँ पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं हैं। यौन हिंसा, हत्या, आत्महत्या, दहेज प्रताड़ना और तेज़ाबी हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
संक्षेप में ‘नया कानून’ यह है कि शादी से पहले ‘सहजीवन’ और शादी के बाद पत्नी से बलात्कार और अन्य यौन क्रीड़ाओं तक का कानूनी अधिकार और घर से बाहर ‘व्यभिचार’ (कॉल-गर्ल, एस्कॉर्ट, वेश्या या प्रेमिका) की खुली कानूनी छूट...’समलैंगिकता’ भी अपराध नहीं! स्त्रियों को ‘सबरीमाला’ या किसी भी मंदिर जाने पर रोक नहीं और मर्दों को किसी भी लाल बत्ती क्षेत्र में कोई नहीं पकड़ेगा। व्यभिचारिणी (अपवित्र) पत्नी को गुजाराभत्ता तक नहीं मिलेगा...! दहेज़ की शिकायत पर कोई गिरफ़्तारी नहीं....बहुत कर लिया दहेज़ कानूनों का दुरुपयोग! समाज में व्यभिचार बढे या देह-व्यापर, स्त्री शोषण-उत्पीड़न बढे या यौन-हिंसा के आंकड़े! स्त्रियाँ चीखती-चिल्लाती रहें ‘सोशल मीडिया’ पर...#METOO...#मीटू!
वरिष्ठ अधिवक्ता 'अरविंद जैन' का विस्तृत आलेख॰॰॰॰॰॰