कश्मीर : एक संक्षिप्त इतिहास: ‘पहली क़िस्त’ (अशोक कुमार पाण्डेय)
अशोक 763 11/17/2018 12:00:00 AM
यूं तो कोई भी इतिहास सत्ता लौलुपताओं से उत्पन्न, वर्गीय संघर्षों से रक्त-रंजित, मानवीय त्रासदियों के बड़े दस्तावेज के रूप में ही मिलता है | कुछ इतिहास सभ्यताओं की तरह ज़मीदोज़ हैं, हो गये या फिर कर दिए गए, यह सब खुद इतिहास बनकर वक़्त की स्मृतियों में दर्ज है | वहीँ कुछ, स्मृतियों में तारीखों में होते रहे बदलावों, साजिशों, घटनाओं के साथ मानवीय अवशेषों को खुद में समेटे आज भी अनिर्णीत रूप में जीवंत हैं | इन्हीं में से, सैकड़ों वर्षों की लम्बी यात्रा कर चुका ‘कश्मीर’ महज़ एक शब्द या एक राज्य का नाम भर नहीं बल्कि वक़्त के क्रूर थपेड़ों से जूझते हुए यहाँ तक पहुंचा एक ऐसा पथिक है जो अपने समय की झोली में संस्कृति, परम्पराएं, लालच, युद्ध, टीस-कराहटें, चीख-पुकार, गीत-संगीत, धारणाओं और किम्ब्दंतियों का बड़ा खजाना अपनी धरोहर के रूप लिए हुए है…… | अन्याय इतिहासों की तरह जीवंत कश्मीर के कृति-विकृत बदलाव झेलते सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक चेहरे को अनेक इतिहासकार स-समय लिपिवद्ध भी करते रहे | इसी कश्मीर के ऐतिहासिक दस्तावेजों और संदर्भों से शोध-दृष्टि के साथ गुज़रते हुए “अशोक कुमार पाण्डेय” “कश्मीरनामा: इतिहास की क़ैद में भविष्य” शीर्षक से किताब लिख रहे हैं | कई वर्षों की लम्बी मेहनत के बाद, मूर्त रूप लेती यह किताब भी जल्द ही हमारे सामने होगी किन्तु इससे पूर्व ‘अशोक कुमार पाण्डेय’ द्वारा लिखा गया ‘कश्मीर : एक संक्षिप्त इतिहास’ आलेख यहाँ पढ़ते हैं | संक्षिप्त रूप में लिखे जाने के बावजूद भी बड़े बन पड़े इस आलेख को हम यहाँ साप्ताहिक किस्तों के रूप में आपके समक्ष लाते रहेंगे | – संपादक